Raksha Bandhan Par Vishesh by Anu Didi

Date: October 20, 2018 Posted by: admin In: BK Anu Didi

Raksha Bandhan Par Vishesh by Anu Didi

रक्षा बंधन पर विशेष – अनु दीदी
आत्म- भान में टिकने का टीका, बनना है मीठा, ये लो मीठा |
ख़ुशी में झुलाती, मिलाके शिव-साथी.
संगम की कल्याणकारी राखी |

रक्षा बंधन के त्यौहार के बारे में अधिकतर लोगो की यही मान्यता चली आ रही हैं कि यह त्यौहार भाई द्वारा बहन की रक्षा का संकल्प लेने का प्रतीक हैं | साथ-साथ ये भी कहा जाता है कि यह त्यौहार हमारे देश में चिरकाल से मनाया जाता रहा हैं | ये दोनों ही बातें हमें इस विवेचना के लिए तैयार करते हैं कि रक्षा बंधन जैसा पवित्रता और स्नेह-हंसी ख़ुशी से जुड़े पर्व की बुनियाद को असुरक्षा की भावना मानना कितना न्याय संगत हैं?

यदि हमारे देश में हर बहन अपने भाई को हर वर्ष रक्षा सूत्र बांधती थी, तो क्या हमारे देश में अपराध इतना बढ़ा हुआ था कि हर कन्या, माता, बहन को भय बना हुआ था और वह अपने लाज को खतरे में महसूस करती थी | इतिहास के अनुसार भारत में घर के दरवाजे खुले रहते थे क्योकि चोरी-चाकरी का कोई भय नहीं था | इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि राजा के गुप्तचर वेश बदलकर पता लगाते थे कि किसी पर अत्याचार तो नहीं हो रहा, कोई दुखी तो नहीं और कोई अपनी जान व माल को खतरे में तो महसूस नहीं करता? यहाँ तक कहा जाता है कि राजा स्वयंग वेश बदलकर अपनी प्रजा की हालत का पता लगाता था |

ऐसी स्थिति में रक्षा की समस्या का ऐसा विकराल रूप तो रहा ही नहीं होगा कि हर बहन अपने भाई को हर वर्ष राखी बांधे | भारत के लोग स्वयंग ही कहते हैं कि भारत देव भूमि था | यहाँ पर ऐसे आख्यान घर-घर पढ़े जाते है जिसमें यह बताया गया है कि एक नारी के चुराए जाने पर चुराने वाले की सारी सत्ता धवस्त कर दी गई | हमारे देश में ये कहा जाता है कि रक्षा करने का कर्त्तव्य क्षत्रियों का था | यदि किसी पर अत्याचार होता था या कोई दुराचार पर ही उतर आता तो क्षत्रिय लोग दुराचार का अंत करने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा देते थे | आतताइयों का सामना करना वे अपना धर्म मानते |

तब क्या ऐसा माना जाये कि देश में शताब्दियों में ऐसे क्षत्रिय ही नहीं रहे थे कि जो माताओं-बहनों की रक्षा के लिए अपने क्षात्र-बल का प्रयोग करते और अपने धर्म का पालन करते! भारत में युग-युगांतर ये नैतिकता और मर्यादा का वातावरण रहा है | हर व्यक्ति अपने गांव की बहन को, दूसरे गांव में चले जाने पर भी सदा अपने गांव की बहन मानकर एक भ्रातृत्व स्नेह की दृष्टि से व्यवहार करता था | ऐसी व्यवस्था में और ऐसे वातावरण में भला अपने मान की रक्षा को एक समस्या मानकर अपने भाई को राखी बांधने का प्रश्न की कैसे उठ सकता था? दरअसल मनुष्य मुख्यतः पांच प्रकार की रक्षा चाहता है – तन की रक्षा, धर्म, सतीत्व की रक्षा, काल से और माया के विघ्नों से रक्षा | परन्तु प्रश्न यह है कि क्या कोई मनुष्य इन् पांचो प्रकार की रक्षा करने में समर्थ है भी?

सर्वप्रथम तन की रक्षा पर विचार कर लीजिये | तन की रक्षा के लिए मनुष्य अनेक कोशिशें करता है परन्तु अंत में उसे यही कहना पड़ता है कि जिसकी मौत आयी हो उसे कोई नहीं बचा सकता है अर्थात भावी टालने से नहीं टलती | दुष्टो से पवित्रता की रक्षा भी वास्तव में सर्वसमर्थ परमपिता परमात्मा ही कर सकते हैं | इसलिए आख्यान प्रसिद्ध है कि कौरवों की भरी सभा में जब द्रौपदी का चीर हरण होने लगा तो द्रौपदी ने भगवान को ही पुकारा था क्योंकि तब कोई मित्र या सम्बन्धी उसकी रक्षा नहीं कर सका था | मनुष्य तो स्वयंग कालाधीन है और बड़े-बड़े योद्धाओं को भी आखिर काल खा जाता है | विश्व विजेता सिकंदर का उदहारण हमारे सामने है |

काल से बचने के लिए मनुष्य महामृत्युंजय पाठ कराता हैं अर्थात परमात्मा शिव की ही शरण में जाने की कामना करता हैं | परमात्मा को ही संकट मोचन, दुःख भंजन और सुख दाता कहते हैं और माया के बंधन से भी परमात्मा ही छुड़ाते हैं तभी तो मनुष्य परमात्मा को पुकारकर कहते हैं – विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा | वैसे भी मानव स्वाभाव से स्वतंत्रता प्रेमी हैं और जिस बात को वह बंधन समझता हैं उससे छूटने का प्रयत्न करता हैं | परन्तु रक्षा बंधन को बहने और भाई त्योहार अथवा उत्सव समझकर ख़ुशी से मनाते हैं | यह एक न्यारा और प्यारा बंधन हैं | हम देखते हैं कि बहन के अतिरिक्त ब्राह्मण भी यजमान को राखी बांधते हैं और बांधते हुए उसे वे कहते हैं कि इन्द्राणी ने भी इन्द्र को राखी बाँधी थी और उससे इन्द्र को विजय प्राप्त हुई थी |

यदि यह त्योहार भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प का प्रतीक होता तो आज तक ब्राह्मणों द्वारा राखी बांधने का रिवाज़ न चला आता | इससे तो यह विदित होता हैं कि यह त्योहार बहनों को भी ब्राह्मणों का दर्जा देकर और भाई को यजमान की तरह से राखी बांधने का प्रतीक हैं क्योंकि दोनों द्वारा राखी बँधाये जाने की रीति भी सामान हैं |

दरअसल यह एक धार्मिक त्योहार हैं और यह इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के संकल्प का सूचक हैं अर्थात भाई-बहन के नाते में जो मन,वचन और कर्म की पवित्रता समय हुई हैं, उसका बोधक हैं | पुनःश्च, यह ऐसे समय की याद दिलाता हैं जब परमपिता परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा कन्याओं-माताओं को ब्राह्मण पद पर आसीन किया, उन्हें ज्ञान का कलश दिया और उन द्वारा भाई-बहन के सम्बन्ध की पवित्रता की स्थापना का कार्य किया जिससे पवित्र सृष्टि की स्थापना हुई | उसी पुनीत कार्य का आज पुनरावृति हो रही हैं | ब्रह्माकुमारी बहने ईश्वरीय ज्ञान और सहज राजयोग द्वारा ब्राह्मण पद पर आसीन होकर राखी बांधकर बहन-भाई के शुद्ध स्नेह और पवित्रता के शुद्ध संकल्प की रक्षा करती हैं |

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