रक्षाबंधन का सन्देश – पवित्र बनो, योगी बनो!
अनु दीदी –
रक्षाबंधन एक विलक्षण त्यौहार हैं, क्योकि मनुष्य को स्वभाव से ही कोई बंधन अच्छा नहीं लगता, फिर भी रक्षाबंधन बड़ी ख़ुशी से बांधा और बंधवाया जाता हैं | प्रचलित प्रथा के अनुसार राखी एक बड़ी बहन अपने नन्हे भाई को, एक धनवान बहन अपने गरीब भाई को, परदेश में रहने वाली बहन अपने दूर देशीय भाई को तथा अनेक बहने अपने इकलौते भाई को भी बांधती अथवा भेजती हैं |
इन परिस्थिति में भाई द्वारा बहन की आर्थिक सहायता अथवा लाज की रक्षा की भी अपनी सीमाएं हैं, ऐतिहासिक दृष्टि से भी राखी की प्रचलित रश्म परंपरागत नहीं लगती, भला यह मानना कहाँ तक उचित होगा कि नारी आदि काल से अबला रही हैं? विचार करे कि दुर्गा, अम्बा, काली इत्यादि शक्तियां, जिनसे भक्त जन आज तक सुरक्षा की कामनाएं करते हैं, उन्हें भला किसके संरक्षण की आवश्यकता रही होगी? सृष्टि के आदि अर्थात सतयुग में न तो धन-संपत्ति की कमी थी और न ही नारी की लाज को कोई खतरा था, नर और नारी दोनों के अधिकार सामान थे और इस बराबरी के स्मरण चिन्ह आज भी उन मूर्तियों और चित्रों के रूप में मिलते हैं जिनमे विश्व महाराजन श्री नारायण और विश्व महारानी श्री लक्ष्मी को एक सिंहासन पर एक साथ विराजमान दिखते हैं | ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की उक्ति के अनुसार उस काल की सभी नारियां सम्मानित तथा सुरक्षित थी | इससे स्पष्ट होता है कि रक्षाबंधन केवल शारीरिक नाते के भाई-बहन का त्यौहार नहीं हैं, बल्कि इसका भावार्थ कहीं अधिक विस्तृत हैं | देखा जाये तो इस पर्व को मानाने के लिए यह काफी बदला हुआ और सिमित सा रूप हैं | पुरोहितो अथवा ब्राह्मणो द्वारा अपने यजमानो को राखी बांधकर तिलक लगाने कि प्रथा प्रचलित हैं | ब्राह्मण भी इस अवसर पर यजमानो को राखी बांधते हैं | परन्तु उनमे यजमानो द्वारा उनकी रक्षा का भाव नहीं हैं | राखी के विषय में एक शास्त्र कथा तो यह हैं कि यम ने अपनी बहन यमुना से राखी बंधवाते हुए ये कहा था कि इस पवित्रता के बंधन में बंधने वाला यमदूतों के भय से छूट जाएगा, एक अन्य कथा के अनुसार जब देवराज इंद्र अपना दैवी स्वराज्य हर गए थे, तब उन्होंने अपनी पत्नी इन्द्राणी से रक्षा सूत्र बंधवाया, जिससे उनका खोया हुआ स्वराज्य पुनः प्राप्त हो गया था | तो स्पष्ट है कि राखी का इतना कोई ऊंच भाव होगा, ये सभी बातें इस सत्यता को घोतक हैं कि रक्षा बंधन एक धार्मिक उत्सव हैं जिसका सम्बन्ध जीवन में श्रेष्ठता एवं निर्विकारिता से हैं | रक्षा बंधन हमें आत्मिक दृष्टि अपनाने अर्थात सबको स्थूल दृष्टि से स्त्री व पुरष न देखकर आत्मा अर्थात भाई-भाई समझने कि प्रेरणा देता हैं | इस सात्विक दृष्टि वृति के लिए पवित्रता का पालन आवश्यक हैं | पवित्रता के द्वारा ही हम भाई-बहन के पावन सम्बन्ध को वास्तविक और व्यापक स्वरुप प्रदान कर सकते हैं तथा सच्चे देवपद के अधिकारी बन सकते हैं | उस सदाशिव परमात्मा तक पहुंचने के लिए पवित्रता ही एकमात्र सोपान हैं | पवित्रता ही सुख-शांति और समृद्धि की जननी हैं | अतः रक्षाबंधन का सन्देश हैं – पवित्र बनो, योगी बनो ! काम वासना एक भयंकर विष हैं जिसे पवित्रता और ब्रह्मचर्य के द्वारा जीता जा सकता हैं | रक्षा बंधन मर्यादा और आत्म निग्रह द्वारा मृत्यु पर विजय पाने का पर्व हैं | (अनु दीदी जी – लेखिका, प्रजापिता ब्रहकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, धनबाद केंद्र की संचालिका हैं)
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